श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  10.64.14-15 
स्वलङ्कृतेभ्यो गुणशीलवद्‍भ्य:
सीदत्कुटुम्बेभ्य ऋतव्रतेभ्य: ।
तप:श्रुतब्रह्मवदान्यसद्‍भ्य:
प्रादां युवभ्यो द्विजपुङ्गवेभ्य: ॥ १४ ॥
गोभूहिरण्यायतनाश्वहस्तिन:
कन्या: सदासीस्तिलरूप्यशय्या: ।
वासांसि रत्नानि परिच्छदान् रथा-
निष्टं च यज्ञैश्चरितं च पूर्तम् ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
सु—अच्छी तरह; अलङ्कृतेभ्य:—आभूषणों से सजाई गई; गुण—अच्छे गुण; शील—तथा चरित्र; वद्भ्य:—से युक्त; सीदत्— पीडि़त; कुटुम्बेभ्य:—कुटुम्बियों को; ऋत—सत्य; व्रतेभ्य:—समर्पित; तप:—तपस्या के लिए; श्रुत—भलीभाँति परिचित; ब्रह्म—वेदों से; वदान्य—अत्यन्त विद्वान; सद्भ्य:—सन्त स्वभाव वालों को; प्रादाम्—मैंने दिया; युवभ्य:—युवकों को; द्विज—ब्राह्मणों को; पुम्-गवेभ्य:—अतीव विशिष्ट; गो—गौवें; भू—भूमि; हिरण्य—सोना; आयतन—घर; अश्व—घोड़े; हस्तिन:—तथा हाथी; कन्या:—विवाह योग्य पुत्रियाँ; स—सहित; दासी:—दासियाँ; तिल—तिल; रूप्य—चाँदी; शय्या:— तथा पलंग; वासांसि—वस्त्र; रत्नानि—रत्न; परिच्छदान्—गृह सामग्री; रथान्—रथ; इष्टम्—की गई पूजा; च—तथा; यज्ञै:— अग्नि यज्ञों द्वारा; चरितम्—किया गया; च—तथा; पूर्तम्—पवित्र कार्य ।.
 
अनुवाद
 
 सर्वप्रथम मैंने दान प्राप्त करने वाले ब्राह्मणों को उत्तम आभूषणों से अलंकृत करके सम्मानित किया। वे अतीव सम्मानित ब्राह्मण जिनके परिवार कष्ट में थे, युवक थे तथा उत्तम चरित्र और गुणों से युक्त थे। वे सत्यनिष्ठ, तपस्या के लिए विख्यात, वैदिक शास्त्रों में पारंगत तथा आचरण में साधुवत थे। मैंने उन्हें गौवें, भूमि, सोना, मकान, घोड़े, हाथी तथा दासी समेत विवाह के योग्य कुमारियाँ, तिल, चाँदी, सुन्दर शय्या, वस्त्र, रत्न, गृहसज्जा-सामग्री तथा रथ दान में दिये। इसके अतिरिक्त मैंने वैदिक यज्ञ किये और अनेक पवित्र कल्याण कार्य सम्पन्न किये।
 
 
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