हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  10.64.27-28 
देवदेव जगन्नाथ गोविन्द पुरुषोत्तम ।
नारायण हृषीकेश पुण्यश्लोकाच्युताव्यय ॥ २७ ॥
अनुजानीहि मां कृष्ण यान्तं देवगतिं प्रभो ।
यत्र क्व‍ापि सतश्चेतो भूयान्मे त्वत्पदास्पदम् ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
देव-देव—स्वामियों के स्वामी; जगत्—ब्रह्माण्ड के; नाथ—हे स्वामी; गो-विन्द—हे गौवों के स्वामी; पुरुष-उत्तम—हे पुरुषोत्तम; नारायण—हे समस्त जीवों के आधार; हृषीकेश—हे इन्द्रियों के स्वामी; पुण्य-श्लोक—हे दिव्य श्लोकों द्वारा स्तुति किये जाने वाले; अच्युत—हे अच्युत; अव्यय—हे न बदलने वाले; अनुजानीहि—कृपया जाने दें; माम्—मुझको; कृष्ण—हे कृष्ण; यान्तम्—जाने वाले को; देव-गतिम्—देवताओं के लोक में; प्रभो—हे प्रभु; यत्र क्व अपि—जहाँ कहीं भी; सत:—रहते हुए; चेत:—मन; भूयात्—हो; मे—मेरा; त्वत्—तुम्हारे; पद—पैरों की; आस्पदम्—शरण ।.
 
अनुवाद
 
 हे देवदेव, जगन्नाथ, गोविन्द, पुरुषोत्तम, नारायण, हृषीकेश, पुण्यश्लोक, अच्युत, अव्यय, हे कृष्ण, कृपा करके मुझे अब देवलोक के लिए प्रस्थान करने की अनुमति दें। हे प्रभु, मैं जहाँ भी रहूँ, मेरा मन सदैव आपके चरणकमलों की शरण ग्रहण करे।
 
तात्पर्य
 श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने इस श्लोक की टीका इस प्रकार की है भगवान् की कृपा प्राप्त हो जाने से उसकी श्रद्धा को बल मिला और इस तरह दास पद प्राप्त करके राजा नृग ने भगवान् के नामों का उच्चारण करते हुए उनका विधिवत यशोगान किया और तब भगवान् से विदा लेने के लिए अनुमति माँगी। उसकी स्तुति का भाव यह है “आप देवदेव अर्थात् देवताओं के स्वामी और जगन्नाथ हैं अत: आप मेरे भी नाथ होइये। हे गोविन्द! आप जिस कृपा-चितवन से गौवों को मोहते हैं उसीसे मुझे अपनी सम्पत्ति बना लें। आप ऐसा कर सकते हैं क्योंकि आप पुरुषोत्तम हैं। हे नारायण! चूँकि आप जीवों के आधार हैं अत: मेरे आश्रय बनें, भले ही मैं बुरा क्यों न होऊँ। हे हृषीकेश! मेरी इन्द्रियों को अपनी बना लें। हे पुण्यश्लोक! अब आप नृग के उद्धारक के रूप में विख्यात हो चुके हैं। हे अच्युत! आप मेरे मन से कभी ओझल न हों। हे अव्यय! मेरे मन में कभी भी आपकी न्यूनता न हो। इन श्लोकों का तात्पर्य इस रूप में श्रीमद्भागवत के महान् टीकाकार श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती द्वारा दिया गया है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥