श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.64.30 
इत्युक्त्वा तं परिक्रम्य पादौ स्पृष्ट्वा स्वमौलिना ।
अनुज्ञातो विमानाग्र्‍यमारुहत् पश्यतां नृणाम् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस प्रकार; उक्त्वा—कहकर; तम्—उनको; परिक्रम्य—परिक्रमा करके; पादौ—पाँवों को; स्पृष्ट्वा—छूकर; स्व—अपने; मौलिना—मुकुट से; अनुज्ञात:—विदा पाकर; विमान—दैवीयान पर; अछयम्—अत्युत्तम; आरुहत्—चढ़ गया; पश्यताम्— देखते देखते; नृणाम्—मनुष्यों के ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह कह कर महाराज नृग ने भगवान् कृष्ण की परिक्रमा की और उनके चरणों पर अपना मुकुट छुवाया तब विदाई की अनुमति पाकर वहाँ पर उपस्थित लोगों के देखते देखते राजा नृग एक अद्भुत स्वर्गिक विमान पर चढ़ गया
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥