कृष्ण: परिजनं प्राह भगवान् देवकीसुत: ।
ब्रह्मण्यदेवो धर्मात्मा राजन्याननुशिक्षयन् ॥ ३१ ॥
शब्दार्थ
कृष्ण:—कृष्ण ने; परिजनम्—निजी संगियों से; प्राह—बोले; भगवान्—भगवान्; देवकी-सुत:—देवकी का पुत्र; ब्रह्मण्य— ब्राह्मण भक्त; देव:—ईश्वर; धर्म—धर्म का; आत्मा—आत्मा; राजन्यान्—राजसी वर्ग को; अनुशिक्षयन्—शिक्षा देने के लिए ।.
अनुवाद
तब देवकी पुत्र, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण जो ब्राह्मणों के प्रति विशेष रूप से अनुरक्त हैं और जो साक्षात् धर्म के सार हैं अपने निजी संगियों से बोले और इस प्रकार राजसी वर्ग को शिक्षा दी।
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