श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  10.64.39 
स्वदत्तां परदत्तां वा ब्रह्मवृत्तिं हरेच्च य: ।
षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमि: ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
स्व—अपने द्वारा; दत्ताम्—दिया गया; पर—दूसरे के द्वारा; दत्ताम्—दिया गया; वा—अथवा; ब्रह्म-वृत्तिम्—ब्राह्मण की सम्पत्ति; हरेत्—चुराता है; च—तथा; य:—जो; षष्टि—साठ; वर्ष—वर्षों तक; सहस्राणि—हजारों; विष्ठायाम्—मल में; जायते—उत्पन्न होता है; कृमि:—कीट ।.
 
अनुवाद
 
 चाहे अपना दिया दान हो या किसी अन्य का, जो व्यक्ति किसी ब्राह्मण की सम्पत्ति को चुराता है, वह साठ हजार वर्षों तक मल में कीट के रूप में जन्म लेगा
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥