एवं विश्राव्य भगवान् मुकुन्दो द्वारकौकस: ।
पावन: सर्वलोकानां विवेश निजमन्दिरम् ॥ ४४ ॥
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; विश्राव्य—सुनाकर; भगवान्—भगवान्; मुकुन्द:—कृष्ण; द्वारका-ओकस:—द्वारकावासियों को; पावन:—शुद्ध करने वाले; सर्व—सभी; लोकानाम्—लोकों के; विवेश—प्रविष्ट हुए; निज—अपने; मन्दिरम्—महल में ।.
अनुवाद
इस तरह से द्वारका निवासियों को उपदेश देने के बाद, समस्त लोकों को पवित्र करने वाले भगवान् मुकुन्द अपने महल में प्रविष्ट हुए।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्ध के अन्तर्गत “राजा नृग का उद्धार” नामक चौंसठवें अध्याय के श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित तात्पर्य पूर्ण हुए।
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