श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.64.6 
स उत्तम:श्लोककराभिमृष्टो
विहाय सद्य: कृकलासरूपम् ।
सन्तप्तचामीकरचारुवर्ण:
स्वर्ग्यद्भ‍ुतालङ्करणाम्बरस्रक् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह; उत्तम:-श्लोक—यशस्वी भगवान् के; कर—हाथ द्वारा; अभिमृष्ट:—स्पर्श की गई; विहाय—छोडक़र; सद्य:— तुरन्त; कृकलास—छिपकली का; रूपम्—स्वरूप; सन्तप्त—पिघले; चामीकर—सोने के; चरु—सुन्दर; वर्ण:—रंग; स्वर्गी— स्वर्ग का निवासी; अद्भुत—विचित्र; अलङ्करण—गहने; अम्बर—वस्त्र; स्रक्—तथा मालाएँ ।.
 
अनुवाद
 
 यशस्वी भगवान् के हाथों का स्पर्श पाते ही उस जीव ने तुरन्त अपना छिपकली का रूप त्याग दिया और स्वर्ग के वासी का रूप धारण कर लिया। उसका रंग पिघले सोने जैसा सुन्दर था और वह अद्भुत गहनों, वस्त्रों तथा मालाओं से अलंकृत था।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥