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अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव
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संक्षेप विवरण: इस अध्याय में यह बतलाया गया है कि किस तरह भगवान् कृष्ण काशी (वाराणसी) गये और वहाँ पौण्ड्रक तथा काशिराज का वध किया, किस तरह सुदर्शन चक्र से असुर को हराया, काशी नगरी... |
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श्लोक 1: शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, जब बलराम नन्द के ग्राम व्रज को देखने गये हुए थे तो करूष के राजा ने मूखर्तापूर्वक यह सोचकर कि “मैं भगवान् वासुदेव हूँ” भगवान् कृष्ण के पास अपना दूत भेजा। |
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श्लोक 2: पौण्ड्रक मूर्ख लोगों की चापलूसी में आ गया जिन्होंने उससे कहा, “तुम भगवान् वासुदेव हो और ब्रह्माण्ड के स्वामी के रूप में अब पृथ्वी में अवतरित हुए हो।” इस तरह वह अपने आपको भगवान् अच्युत मान बैठा। |
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श्लोक 3: अतएव उस मन्द बुद्धि पौण्ड्रक ने अव्यक्त भगवान् कृष्ण के पास द्वारका में एक दूत भेजा। पौण्ड्रक ऐसे मूर्ख बालक की तरह आचरण कर रहा था जिसे अन्य बालक राजा मान लेते हैं। |
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श्लोक 4: द्वारका पहुँचने पर दूत ने कमल-नेत्र कृष्ण को उनकी राजसभा में उपस्थित पाया। उसने राजा का सन्देश उन सर्वशक्तिमान प्रभु को कह सुनाया। |
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श्लोक 5: [पौण्ड्रक की ओर से दूत ने कहा] : मैं ही एकमात्र भगवान् वासुदेव हूँ और दूसरा कोई नहीं है। मैं ही इस जगत में जीवों पर दया दिखलाने के लिए अवतरित हुआ हूँ। अत: तुम अपना झूठा नाम छोड़ दो। |
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श्लोक 6: हे सात्वत, तुम मेरे निजी प्रतीकों को छोड़ दो जिन्हें इस समय तुम मूर्खतावश धारण करते हो और आकर मेरी शरण लो। यदि तुम ऐसा नहीं करते तो मुझसे युद्ध करो। |
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श्लोक 7: शुकदेव गोस्वामी ने कहा : जब अज्ञानी पौण्ड्रक की इस व्यर्थ की डींग को राजा उग्रसेन तथा सभा के अन्य सदस्यों ने सुना तो वे जोर-जोर से हँसने लगे। |
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श्लोक 8: सभा के हँसी-मजाक का आनन्द लेने के बाद भगवान् ने दूत से (अपने स्वामी को सूचित करने के लिए) कहा, “रे मूर्ख! मैं निस्सनदेह उन हथियारों को फेंक दूँगा जिनके विषय में तुम इस तरह डींग मार रहे हो।” |
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श्लोक 9: “रे मूर्ख! जब तुम मारे जाओगे और तुम्हारा मुख गीधों, चील्हों तथा वट पक्षियों से ढका रहेगा तो तुम कुत्तों का आश्रय-स्थल बनोगे।” |
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श्लोक 10: जब भगवान् इस तरह बोल चुके तो उनके अपमानपूर्ण उत्तर को उस दूत ने अपने स्वामी के पास जाकर पूरी तरह कह सुनाया। तब भगवान् कृष्ण अपने रथ पर सवार हुए और काशी के निकट गये। |
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श्लोक 11: भगवान् कृष्ण द्वारा युद्ध की तैयारी को देखते हुए बलशाली योद्धा पौण्ड्रक तुरन्त ही दो अक्षौहिणी सेना के साथ नगर के बाहर निकल आया। |
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श्लोक 12-14: हे राजन्, पौण्ड्रक का मित्र काशीराज उसके पीछे पीछे गया और वह तीन अक्षौहिणी सेना समेत पीछे के रक्षकों की अगुआई कर रहा था। भगवान् कृष्ण ने देखा कि पौण्ड्रक भगवान् के ही प्रतीक यथा शंख, चक्र, तलवार तथा गदा और दिखावटी शार्ङ्ग धनुष तथा श्रीवत्स चिन्ह भी धारण किये था। वह नकली कौस्तुभ मणि भी पहने था। वह जंगली फूलों की माला से सुशोभित था और ऊपर और नीचे उत्तम पीले रेशमी वस्त्र पहने था। उसके झंडे में गरुड़ का चिन्ह था और वह मूल्यवान मुकुट तथा चमचमाते मकराकृति वाले कुंडल पहने था। |
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श्लोक 15: जब भगवान् हरि ने देखा कि राजा ने उन्हीं जैसा अपना वेश बना रखा है, जिस तरह मंच पर कोई अभिनेता करता है, तो वे खूब हँसे। |
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श्लोक 16: भगवान् हरि के शत्रुओं ने उन पर त्रिशूलों, गदाओं, नेचों, शक्तियों, ऋष्टियों, प्रासों, तोमरों, तलवारों, कुल्हाडिय़ों तथा बाणों से आक्रमण किया। |
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श्लोक 17: किन्तु भगवान् कृष्ण ने पौण्ड्रक तथा काशिराज की सेना पर भीषण वार किया, जिसमें हाथी, रथ, घोड़े तथा पैदल सम्मिलित थे। भगवान् ने अपनी गदा, तलवार, सुदर्शन चक्र तथा बाणों से अपने शत्रुओं को उसी तरह रौंद दिया जिस तरह युगान्त में प्रलयाग्नि विविध प्रकारके प्राणियों को रौंदती है। |
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श्लोक 18: भगवान् के चक्र द्वारा खण्ड-खण्ड किये गये रथों, घोड़ों, हाथियों, मनुष्यों, खच्चरों तथा ऊँटों से पटा हुआ युद्ध क्षेत्र उसी तरह चमक रहा था मानो विद्वान को आनन्द प्रदान करने वाला भूतपति का भयावना अखाड़ा हो। |
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श्लोक 19: तब भगवान् कृष्ण ने पौण्ड्रक को सम्बोधित किया : रे पौण्ड्रक! तूने अपने दूत के माध्यम से जिन हथियारों के लिए कहलवाया था अब मैं उन्हीं को तुझ पर छोड़ रहा हूँ। |
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श्लोक 20: रे मूर्ख! अब मैं तुझसे अपना नाम छुड़वाकर रहूँगा जिसे तूने झूठे ही धारण कर रखा है। मैं तब अवश्य ही तेरी शरण ग्रहण करूँगा यदि मैं तुझसे युद्ध नहीं करना चाहूँगा। |
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श्लोक 21: पौण्ड्रक को इस तरह चिढ़ा कर भगवान् कृष्ण ने अपने तेज बाणों से उसका रथ विनष्ट कर दिया। फिर भगवान् ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर उसी तरह काट लिया जिस तरह इन्द्र अपने वज्र से पर्वत की चोटी को काट गिराता है। |
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श्लोक 22: भगवान् कृष्ण ने अपने बाणों से काशिराज के सिर को उसके शरीर से उसी तरह काट कर उसे काशी नगरी में जा गिराया मानो वायु द्वारा फेंका गया कमल का फूल हो। |
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श्लोक 23: इस तरह ईर्ष्यालु पौण्ड्रक तथा उसके सहयोगी का वध करने के बाद भगवान् कृष्ण द्वारका लौट गये। ज्योंही वे नगर में प्रविष्ट हुए स्वर्ग के सिद्धों ने उनकी अमर अमृतमयी महिमा का गान किया। |
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श्लोक 24: निरन्तर भगवान् का ध्यान करते रहने से पौण्ड्रक ने अपने सारे भौतिक बन्धनों को ध्वंस कर दिया था। हे राजन्, निस्सन्देह भगवान् कृष्ण के स्वरूप का अनुकरण करके अन्ततोगत्वा वह कृष्णभावनाभावित हो गया। |
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श्लोक 25: राजमहल के द्वार पर पड़े हुए कुण्डल से विभूषित सिर को देखकर वहाँ पर उपस्थित सारे लोग चकित थे। उनमें से कुछ ने पूछा, “यह क्या है?” और दूसरों ने कहा, “यह सिर है लेकिन, यह है किसका?” |
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श्लोक 26: हे राजन्, जब उन लोगों ने पहचाना कि यह उनके राजा—काशीपति का सिर है, तो उसकी रानियाँ, पुत्र तथा अन्य सम्बन्धी एवं नगर के सारे निवासी “हाय! हम मारे गये! हे नाथ, हे नाथ!” कह कर रोने लगे। |
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श्लोक 27-28: जब राजा का पुत्र सुदक्षिण अपने पिता का दाह-संस्कार कर चुका तो उसने अपने मन में निश्चय किया, “मैं अपने पिता के हत्यारे का वध करके ही उसकी मृत्यु का बदला ले सकता हूँ।” इस तरह दानी सुदक्षिण अपने पुरोहितों सहित बहुत ही लगन से भगवान् महेश्वर की पूजा करने लगा। |
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श्लोक 29: पूजा से सन्तुष्ट होकर शक्तिशाली शिवजी अविमुक्त नामक पवित्र स्थल में प्रकट हुए और सुदक्षिण को इच्छित वर माँगने को कहा। राजकुमार ने अपने पिता के वध करने वाले की हत्या करने के साधन को ही अपने वर के रूप में चुना। |
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श्लोक 30-31: शिवजी ने कहा : “तुम ब्राह्मणों के साथ अभिचार अनुष्ठान के आदेशों का पालन करते हुए आदि पुरोहित दक्षिणाग्नि की सेवा करो। तब दक्षिणाग्नि अनेक प्रमथों सहित तुम्हारी इच्छा पूरी करेगा यदि तुम इसे ब्राह्मणों से शत्रुता रखने वाले किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध निर्देशित कर सकोगे।” इस प्रकार आदिष्ट सुदक्षिण ने अनुष्ठान व्रतों का दृढ़ता से पालन किया और कृष्ण के विरुद्ध अभिचार का आह्वान किया। |
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श्लोक 32-33: तत्पश्चात् यज्ञकुण्ड से अत्यन्त भयावने नंग-धडंग पुरुष का रूप धारण कर अग्नि बाहर निकली। इस अग्नि सरीखे प्राणी की दाढ़ी तथा चोटी पिघले ताँबे जैसी थीं और उसकी आँखों से जलते हुए गर्म अंगारे निकल रहे थे। उसका मुख दाढ़ों तथा भयावह कुटिल एवं गहरी भौंहों के साथ अत्यन्त भयावना लग रहा था। अपने मुख के कोनों को अपनी जीभ से चाटता हुआ यह असुर अपना ज्वलित त्रिशूल हिला रहा था। |
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श्लोक 34: यह दैत्य ताड़-वृक्ष जैसी लंबी टाँगों से अपने साथ भूतों को लेकर, धरती को हिलाता तथा संसार को सभी दिशाओं में जलाता हुआ द्वारका की ओर भागा। |
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श्लोक 35: अभिचार अनुष्ठान से उत्पन्न अग्नि तुल्य असुर को निकट आते देखकर द्वारका के सारे निवासी उसी तरह भयभीत हो उठे जिस तरह दावाग्नि (जंगल की अग्नि) से पशु भयभीत हो उठते हैं। |
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श्लोक 36: भय से किंकर्तव्यविमूढ़ लोगों ने उस समय राज-दरबार में चौसर खेल रहे भगवान् के पास रो-रो कर कहा, “हे तीनों लोकों के स्वामी, नगर को जलाने वाली इस अग्नि से हमारी रक्षा कीजिये! रक्षा कीजिये!” |
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श्लोक 37: जब कृष्ण ने लोगों की व्याकुलता सुनी और देखा कि उनके अपने लोग भी विक्षुब्ध हैं, तो एकमात्र सर्वश्रेष्ठ शरणदाता हँस पड़े और उनसे कहा, “डरो मत, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा।” |
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श्लोक 38: सबों के अन्त: और बाह्य साक्षी सर्वशक्तिमान भगवान् समझ गये कि यह दैत्य शिवजी द्वारा यज्ञ-अग्नि से उत्पन्न किया गया है। इस असुर को पराजित करने के लिए कृष्ण ने अपनी बगल में प्रतीक्षा कर रहे अपने सुदर्शन चक्र को रवाना कर दिया। |
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श्लोक 39: भगवान् मुकुन्द का वह सुदर्शन चक्र करोड़ों सूर्यों की तरह प्रज्ज्वलित हो उठा। उसका तेज ब्रह्माण्ड की प्रलयाग्नि सदृश प्रज्ज्वलित था और अपनी गर्मी से वह आकाश, सारी दिशाओं, स्वर्ग तथा पृथ्वी एवं उस अग्नि-तुल्य असुर को भी पीड़ा देने लगा। |
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श्लोक 40: हे राजन्, भगवान् कृष्ण के अस्त्र की शक्ति से विचलित, तंत्र से उत्पन्न वह अग्नि-तुल्य प्राणी अपना मुँह मोडक़र चला गया। तब हिंसा के लिए उत्पन्न किया गया वह असुर वाराणसी लौट आया जहाँ उसने नगर को घेर लिया और सुदक्षिण तथा उसके पुरोहितों को जलाकर भस्म कर दिया यद्यपि सुदक्षिण ही उसका उत्पन्न करने वाला था। |
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श्लोक 41: भगवान् विष्णु का चक्र अग्नि तुल्य असुर का पीछा करते हुए वाराणसी के भीतर भी घुसा और फिर नगर को भस्म करने लगा, जिसमें नगर के सभाभवन तथा अट्टालिकाओं से युक्त आवासीय महल, सारे बाजार, नगरद्वार, बुर्जियाँ, भण्डार तथा खजाने और हथसाल, घुड़साल, रथसाल तथा अन्नों के गोदाम सम्मिलित थे। |
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श्लोक 42: सम्पूर्ण वाराणसी नगरी को जलाने के बाद भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र बिना प्रयास के कर्म करने वाले श्रीकृष्ण के पास लौट आया। |
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श्लोक 43: जो भी मर्त्य प्राणी भगवान् उत्तमश्लोक की इस वीरतापूर्ण लीला को सुनाता है या केवल इसे ध्यानपूर्वक सुनता है, वह सारे पापों से मुक्त हो जाएगा। |
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