तत्पश्चात् क्रुद्ध यादवेन्द्र ने अपनी गदा और हल को एक ओर फेंक दिया और अपने खाली हाथों से द्विविद की हँसली पर जोर का प्रहार किया। वह वानर रक्त वमन करता हुआ भूमि पर गिर पड़ा।
तात्पर्य
लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण में श्रील प्रभुपाद ने लिखा है : “इस बार बलरामजी अत्यन्त क्रोधित हो उठे। क्योंकि वानर उन पर हाथों से प्रहार कर रहा था अतएव बलरामजी ने भी उस पर अपनी गदा या हल से प्रहार नहीं किया। वे केवल मुक्के से वानर की हँसली (गले के पास की हड्डी) पर प्रहार करने लगे। यह प्रहार द्विविद के लिए प्राणान्तक सिद्ध हुआ।”
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