रुदितम्—करुणापूर्वक रोती हुई माता यशोदा; अनुनिशम्य—सुनकर; तत्र—वहाँ; गोप्य:—अन्य गोपियाँ; भृशम्—अत्यधिक; अनुतप्त—माता यशोदा के साथ विलाप करती; धिय:—ऐसी भावनाओं से; अश्रु-पूर्ण-मुख्य:—तथा आँसुओं से पूरित मुखों वाली अन्य गोपियाँ; रुरुदु:—रो रही थीं; अनुपलभ्य—न पाकर; नन्द-सूनुम्—नन्द महाराज के पुत्र, कृष्ण को; पवने—बवंडर के; उपारत—बन्द हो जाने पर; पांशु-वर्ष-वेगे—धूल की वर्षा के वेग से ।.
अनुवाद
जब अंधड़ तथा बवंडर का वेग घट गया, तो यशोदा का करुण क्रन्दन सुनकर उनकी सखियाँ—गोपियाँ—उनके पास आईं। किन्तु वे भी कृष्ण को वहाँ न देखकर अत्यन्त उद्विग्न हुईं और आँखों में आँसू भर कर माता यशोदा के साथ वे भी रोने लगीं।
तात्पर्य
कृष्ण के प्रति गोपियों की अनुरक्ति विलक्षण तथा दिव्य है। गोपियों के सारे कार्यकलापों के केन्द्र कृष्ण थे। कृष्ण के रहने पर वे सुखी
रहती थीं किन्तु उनके पास न होने पर वे दुखी थीं। इस तरह जब माता यशोदा कृष्ण के जाने से विलाप कर रही थीं तो अन्य स्त्रियाँ भी रोने लगीं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥