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श्लोक  |
मृगतृष्णां यथा बाला मन्यन्त उदकाशयम् ।
एवं वैकारिकीं मायामयुक्ता वस्तु चक्षते ॥ ११ ॥ |
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शब्दार्थ |
मृग-तृष्णाम्—मृगतृष्णा; यथा—जिस तरह; बाला:—बच्चों जैसी बुद्धि वाले व्यक्ति; मन्यन्ते—विचार करते हैं; उदक—जल के; आशयम्—आगार को; एवम्—उसी तरह; वैकारिकीम्—विकारों के अधीन; मायाम्—माया को; अयुक्ता:—विवेकहीन; वस्तु—चीज जैसा; चक्षते—दिखता है ।. |
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अनुवाद |
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जिस तरह बालबुद्धि वाले लोग मरूस्थल में मृगतृष्णा को जलाशय मान लेते हैं, उसी तरह जो अविवेकी हैं, वे माया के विकारों को वास्तविक मान लेते हैं। |
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