श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 73: बन्दी-गृह से छुड़ाये गये राजाओं को कृष्ण द्वारा आशीर्वाद  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  10.73.21 
भवन्त एतद् विज्ञाय देहाद्युत्पाद्यमन्तवत् ।
मां यजन्तोऽध्वरैर्युक्ता: प्रजा धर्मेण रक्ष्यथ ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
भवन्त:—आप लोग; एतत्—यह; विज्ञाय—जान कर; देह-आदि—भौतिक शरीर तथा अन्य बातें; उत्पाद्यम्—जन्म के अधीन; अन्त-वत्—अन्त होने वाला; माम्—मुझको; यजन्त:—पूजा करते हुए; अध्वरै:—वैदिक यज्ञों के द्वारा; युक्ता:—विमल बुद्धि से युक्त; प्रजा:—अपनी प्रजा की; धर्मेण—धार्मिक सिद्धान्तों के अनुसार; रक्ष्यथ—रक्षा करनी चाहिए ।.
 
अनुवाद
 
 यह समझते हुए कि यह भौतिक शरीर तथा इससे सम्बद्ध हर वस्तु का आदि तथा अन्त है, वैदिक यज्ञों के द्वारा मेरी पूजा करो और धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार विमल बुद्धि से अपनी प्रजा की रक्षा करो।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥