श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 73: बन्दी-गृह से छुड़ाये गये राजाओं को कृष्ण द्वारा आशीर्वाद  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  10.73.29 
त एवं मोचिता: कृच्छ्रात् कृष्णेन सुमहात्मना ।
ययुस्तमेव ध्यायन्त: कृतानि च जगत्पते: ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
ते—वे; एवम्—इस प्रकार; मोचिता:—मुक्त हुए; कृच्छ्रात्—मुश्किल से; कृष्णेन—कृष्ण द्वारा; सु-महा-आत्मना—महापुरुष; ययु:—चले गये; तम्—उनको; एव—एकमात्र; ध्यायन्त:—ध्यान करते; कृतानि—कार्यों को; च—तथा; जगत्-पते:— ब्रह्माण्ड के स्वामी के ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह पुरुषों में महानतम कृष्ण द्वारा सारे कष्टों से मुक्त किये गये राजागण विदा हुए और जब वे जा रहे थे, तो वे एकमात्र उन ब्रह्माण्ड के स्वामी तथा उनके अद्भुत कृत्यों के विषय में ही सोच रहे थे।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥