जगदु: प्रकृतिभ्यस्ते महापुरुषचेष्टितम् ।
यथान्वशासद् भगवांस्तथा चक्रुरतन्द्रिता: ॥ ३० ॥
शब्दार्थ
जगदु:—बतलाया; प्रकृतिभ्य:—अपने मंत्रियों तथा अन्य संगियों से; ते—उन (राजाओं ने); महा-पुरुष—परम पुरुष के; चेष्टितम्—कार्यकलापों को; यथा—जिस तरह; अन्वशासत्—आदेश दिया; भगवान्—भगवान् ने; तथा—उसी तरह; चक्रु:— उन्होंने किया; अतन्द्रिता:—बिना किसी ढिलाई के ।.
अनुवाद
राजाओं ने जाकर अपने मंत्रियों तथा अन्य संगियों से वे सारी बातें बतलाईं जो भगवान् ने की थीं और तब उन्होंने जो जो आदेश दिये थे, उनका कर्मठता के साथ पालन किया।
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