सदस्यर्त्विग्द्विजश्रेष्ठा ब्रह्मघोषेणभूयसा ।
देवर्षिपितृगन्धर्वास्तुष्टुवु: पुष्पवर्षिण: ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
सदस्य—सदस्य; ऋत्विक्—पुरोहित; द्विज—तथा ब्राह्मण; श्रेष्ठा:—श्रेष्ठ; ब्रह्म—वेदों के; घोषेण—ध्वनि से; भूयसा—प्रचुर; देव—देवता; ऋषि—ऋषिगण; पितृ—पुरखे; गन्धर्वा:—तथा स्वर्ग के गवैयों ने; तुष्टुवु:—यशोगान किया; पुष्प—फूलों की; वर्षिण:—वर्षा करते हुए ।.
अनुवाद
सभासदों, पुरोहितों तथा अन्य उत्तम ब्राह्मणों ने जोर-जोर से वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया, जबकि देवताओं, ऋषियों, पितरों तथा गन्धर्वों ने यशोगान किया और फूलों की वर्षा की।
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