श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 75: दुर्योधन का मानमर्दन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.75.14 
स्वलङ्कृता नरा नार्यो गन्धस्रग्भूषणाम्बरै: ।
विलिम्पन्त्योऽभिसिञ्चन्त्यो विजह्रुर्विविधै रसै: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
सु-अलङ्कृता:—अच्छी तरह सजे-धजे; नरा:—पुरुष; नार्य:—तथा स्त्रियाँ; गन्ध—चन्दन-लेप; स्रक्—फूल की मालाओं; भूषण—आभूषणों; अम्बरै:—तथा वस्त्रों से; विलिम्पन्त्य:—चुपड़ कर; अभिषिञ्चन्त्य:—तथा छिडक़ कर; विजह्रु:—खेलने लगे; विविधै:—विविध; रसै:—तरल पदार्थों से ।.
 
अनुवाद
 
 चन्दन-लेप, पुष्प-मालाओं, आभूषण तथा उत्तम वस्त्र से सज्जित सारे पुरुषों तथा स्त्रियों ने विविध द्रवों को एक-दूसरे पर मल कर तथा छिडक़ कर खूब खिलवाड़ किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥