श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 75: दुर्योधन का मानमर्दन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  10.75.15 
तैलगोरसगन्धोदहरिद्रासान्द्रकुङ्कुमै: ।
पुम्भिर्लिप्ता: प्रलिम्पन्त्यो विजह्रुर्वारयोषित: ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
तैल—वानस्पतिक तेल; गो-रस—दही; गन्ध-उद—सुगन्धित जल; हरिद्रा—हल्दी; सान्द्र—प्रचुर; कुङ्कुमै:—तथा सिंदूर से; पुम्भि:—पुरुषों द्वारा; लिप्ता:—लपेटे हुए; प्रलिम्पन्त्य:—उलट कर पोतते हुए; विजह्रु:—खिलवाड़ किया; वार-योषित:— वारांगनाओं ने ।.
 
अनुवाद
 
 पुरुषों ने वारांगनाओं के शरीरों को बहुत सारा तेल, दही, सुगन्धित जल, हल्दी तथा कुंकुम चूर्ण से पोत दिया और पलटकर उन स्त्रियों ने पुरुषों के शरीरों में वैसी ही वस्तुएँ दे पोतीं।
 
तात्पर्य
 श्रील प्रभुपाद ने इस दृश्य का वर्णन इस प्रकार किया है : “इन्द्रप्रस्थ के पुरुषों एवं स्त्रियों के शरीर विभिन्न प्रकार के इत्र एवं पुष्प-तेलों से चुपड़े थे। वे सभी सुन्दर-सुन्दर रंगीन वस्त्र धारण किये थे और मालाओं, रत्नों तथा आभूषणों से अलंकृत थे। वे सभी उस समारोह का आनन्द उठा रहे थे और एक-दूसरे पर जल, तेल, दूध, मक्खन एवं दही जैसे तरल पदार्थों को फेंक रहे थे। कुछ लोगों ने तो इन पदार्थों को एक-दूसरे के शरीर पर पोत डाला। इस प्रकार वे उत्सव का आनन्द उठा रहे थे। वारांगनाएँ भी आनन्दविभोर होकर इन तरल पदार्थों को पुरुषों के शरीरों पर लगाने में जुटी थीं तथा पुरुष भी स्त्रियों के साथ उसी प्रकार कर रहे थे। सभी तरल पदार्थों से हल्दी एवं केसर में मिलाये गये थे, जिससे उसका रंग चमकदार पीला था।”
 
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