पत्नीसंयाजावभृथ्यैश्चरित्वा ते तमृत्विज: ।
आचान्तं स्नापयां चक्रुर्गङ्गायां सह कृष्णया ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
पत्नी-संयाज—यज्ञकर्ता तथा उसकी पत्नी द्वारा सम्पन्न अनुष्ठान, जिसमें सोम, त्वष्टा, कुछ देवियों तथा अग्नि का तर्पण सम्मिलित हैं; अवभृथ्यै:—यज्ञ-पूर्ति के लिए किये गये अनुष्ठान; चरित्वा—सम्पन्न करके; ते—वे; तम्—उसको; ऋत्विज:— पुरोहितगण; आचान्तम्—शुद्धि के लिए जल सुडक़ कर आचमन करके; स्नापयाम् चक्रु:—उन्हें नहलाया; गङ्गायाम्—गंगा नदी में; सह—साथ साथ; कृष्णया—द्रौपदी के ।.
अनुवाद
पुरोहितों ने राजा से पत्नी-संयाज तथा अवभृथ्य के अन्तिम अनुष्ठान पूर्ण कराये। तब उन्होंने राजा तथा रानी द्रौपदी से शुद्धि के लिए जल आचमन करने एवं गंगा नदी में स्नान करने के लिए कहा।
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