अथ राजाहते क्षौमे परिधाय स्वलङ्कृत: ।
ऋत्विक्सदस्यविप्रादीनानर्चाभरणाम्बरै: ॥ २२ ॥
शब्दार्थ
अथ—तत्पश्चात्; राजा—राजा; अहते—कोरा, बिना पहना; क्षौमे—रेशमी वस्त्र का जोड़ा; परिधाय—पहन कर; सु- अलङ्कृत:—सुन्दर ढंग से सज्जित; ऋत्विक्—पुरोहितगण; सदस्य—सभा के कार्यकारी सदस्य; विप्र—ब्राह्मण; आदीन्— इत्यादि; आनर्च—पूजा की; आभरण—गहनों से; अम्बरै:—तथा वस्त्रों से ।.
अनुवाद
इसके बाद राजा ने नये रेशमी वस्त्र धारण किये और अपने को सुन्दर आभूषणों से अलंकृत किया। तत्पश्चात् उन्होंने पुरोहितों, सभा के सदस्यों, विद्वान ब्राह्मणों तथा अन्य अतिथियों को आभूषण तथा वस्त्र भेंट करके उनका सम्मान किया।
तात्पर्य
श्रील प्रभुपाद लिखते हैं, “राजा ने न केवल स्वयं वस्त्र धारण किये और अपने आप को अलंकृत किया, अपितु उन्होंने सारे पुरोहितों तथा यज्ञ में भाग लेने वाले सारे लोगों को भी वस्त्र तथा आभूषण प्रदान किये। इस तरह उन्होंने सबों की पूजा की।”
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.