श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 75: दुर्योधन का मानमर्दन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.75.23 
बन्धूञ्ज्ञातीन् नृपान् मित्रसुहृदोऽन्यांश्च सर्वश: ।
अभीक्ष्णं पूजयामास नारायणपरो नृप: ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
बन्धून्—दूर के सम्बन्धियों; ज्ञातीन्—परिवार के निकटजनों; नृपान्—राजाओं; मित्र—मित्रों; सुहृद:—तथा शुभचिन्तकों को; अन्यान्—अन्यों को; च—भी; सर्वश:—सभी प्रकार से; अभीक्ष्णम्—निरन्तर; पूजयाम् आस—पूजा की; नारायण-पर:— नारायण-भक्त; नृप:—राजा ने ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् नारायण के प्रति पूर्णतया समर्पित राजा युधिष्ठिर ने अपने सम्बन्धियों, परिवार वालों, अन्य राजाओं, अपने मित्रों, अपने शुभचिन्तकों तथा वहाँ पर उपस्थित सारे लोगों का निरन्तर सम्मान करते रहे।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥