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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 75: दुर्योधन का मानमर्दन  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  10.75.38 
जहास भीमस्तं द‍ृष्ट्वा स्‍त्रियो नृपतयोऽपरे ।
निवार्यमाणा अप्यङ्ग राज्ञा कृष्णानुमोदिता: ॥ ३८ ॥
 
शब्दार्थ
जहास—हँस पड़ा; भीम:—भीमसेन; तम्—उसको; दृष्ट्वा—देख कर; स्त्रिय:—स्त्रियाँ; नृ-पतय:—राजागण; अपरे—तथा अन्य; निवार्यमाणा:—रोके जाने पर; अपि—भी; अङ्ग—हे प्रिय (परीक्षित); राज्ञा—राजा (युधिष्ठिर) द्वारा; कृष्ण—कृष्ण द्वारा; अनुमोदिता:—समर्थित, सहमत ।.
 
अनुवाद
 
 हे परीक्षित, यह देख कर भीम हँस पड़े और उसी तरह स्त्रियाँ, राजा तथा अन्य लोग भी हँसे। राजा युधिष्ठिर ने उन्हें रोकना चाहा, किन्तु भगवान् कृष्ण ने अपनी सहमति प्रदर्शित की।
 
तात्पर्य
 श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती उल्लेख करते हैं कि राजा युधिष्ठिर ने स्त्रियों तथा भीम को तिरछी नजर से देख कर उनकी हँसी रुकवानी चाही। किन्तु भगवान् कृष्ण ने अपने भौंहों के इशारे से हँसी के लिए अपनी सहमति दे दी। भगवान् इस धरा पर दुष्ट राजाओं का भार दूर करने आये थे और यह घटना भगवान् के अभिप्राय से असम्बद्ध नहीं थी।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥