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श्लोक 10.76.8  |
स लब्ध्वा कामगं यानं तमोधाम दुरासदम् ।
ययौ द्वारवतीं शाल्वो वैरं वृष्णिकृतं स्मरन् ॥ ८ ॥ |
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शब्दार्थ |
स:—वह; लब्ध्वा—प्राप्त करके; काम-गम्—इच्छानुसार भ्रमण करने वाला; यानम्—यान को; तम:—अंधकार का; धाम— घर; दुरासदम्—जहाँ पहुँचा न जा सके; ययौ—गया; द्वारवतीम्—द्वारका; शाल्व:—शाल्व; वैरम्—शत्रुता; वृष्णि-कृतम्— वृष्णियों द्वारा की गई; स्मरन्—स्मरण करते हुए ।. |
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अनुवाद |
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यह दुर्दम्य यान अंधकार से पूर्ण था और कहीं भी जा सकता था। इसे प्राप्त करने पर शाल्व अपने प्रति वृष्णियों की शत्रुता स्मरण करते हुए द्वारका गया। |
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