शाल्व उन राजाओं में से एक था, जो रुक्मिणीदेवी के विवाह के समय पराजित हुए थे। उसने तब यह प्रतिज्ञा की थी कि वह पृथ्वी पर से समस्त यादवों का सफाया कर देगा, अत: वह प्रतिदिन मुट्ठी भर धूल फाँक कर शिवजी की पूजा करने लगा। जब एक साल बीता तो शिवजी शाल्व के समक्ष प्रकट हुए और उससे वर माँगने के लिए कहा। शाल्व ने ऐसे उडऩ-यंत्र का वर माँगा, जो कहीं भी जा सके और देवों, असुरों तथा मनुष्यों को भयभीत बना दे। शिवजी ने उसकी विनती मान ली और मय दानव से सौभ नामक एक उड़ता हुआ लोहे का नगर बनवाया। शाल्व यह यान लेकर द्वारका गया, जहाँ उसने अपनी विशाल सेना के साथ नगर में घेरा डाल दिया। उसने अपने विमान से द्वारका पर पेड़ों के तनों, पत्थरों तथा अन्य प्रक्षेप्यों से बमबारी की और ऐसा चक्रवात उत्पन्न कर दिया, जिसकी धूल से सब कुछ ओझल हो उठा। जब प्रद्युम्न, सात्यकि तथा अन्य यदुवीरों ने द्वारका तथा द्वारकावासियों की दयनीय दशा देखी, तो वे शाल्व की सेना से लडऩे के लिए गये। योद्धाओं में श्रेष्ठ प्रद्युम्न ने अपने दैवी हथियारों से शाल्व का सारा भ्रामक जादू ध्वस्त कर दिया और शाल्व को भी मोहित कर दिया। इस तरह शाल्व का विमान पृथ्वी में, आकाश में तथा पर्वत की चोटियों पर निरुद्देश्य चक्कर लगाने लगा। किन्तु तब शाल्व के अनुयायी द्युमान ने प्रद्युम्न की छाती पर अपनी गदा से वार किया। प्रद्युम्न का सारथी अपने स्वामी को बुरी तरह घायल देख कर उन्हें युद्धस्थल से बाहर ले आया, किन्तु प्रद्युम्न को शीघ्र ही चेत हुआ, तो उन्होंने अपने सारथी को इस तरह के कार्य के लिए बुरी तरह से फटकारा। |