|
श्लोक |
हाहाकारो महानासीद् भूतानां तत्र पश्यताम् ।
निनद्य सौभराडुच्चैरिदमाह जनार्दनम् ॥ १६ ॥ |
|
शब्दार्थ |
हाहा-कार:—निराशा की चिल्लाहट; महान्—अत्यधिक; आसीत्—हुई; भूतानाम्—जीवों में; तत्र—वहाँ; पश्यताम्—देख रहे; निनद्य—गरजकर; सौभ-राट्—सौभ के स्वामी ने; उच्चै:—तेजी से; इदम्—यह; आह—कहा; जनार्दनम्—कृष्ण से ।. |
|
अनुवाद |
|
जो यह घटना देख रहे थे, वे सब हाहाकार करने लगे। तब सौभ के स्वामी ने जोर-जोर से गरजकर जनार्दन से इस प्रकार कहा। |
|
|
____________________________ |