यत्त्वया मूढ न: सख्युर्भ्रातुर्भार्या हृतेक्षताम् ।
प्रमत्त: स सभामध्ये त्वया व्यापादित: सखा ॥ १७ ॥
तं त्वाद्य निशितैर्बाणैरपराजितमानिनम् ।
नयाम्यपुनरावृत्तिं यदि तिष्ठेर्ममाग्रत: ॥ १८ ॥
शब्दार्थ
यत्—चूँकि; त्वया—तुम्हारे द्वारा; मूढ—हे मूर्ख; न:—हमारे; सख्यु:—मित्र (शिशुपाल) की; भ्रातु:—(अपने) भाई की; भार्या—पत्नी; हृता—हरण की गई; ईक्षताम्—हमारे देखते-देखते; प्रमत्त:—लापरवाह; स:—वह, शिशुपाल; सभा— (राजसूय यज्ञ की) सभा; मध्ये—में; त्वया—तुम्हारे द्वारा; व्यापादित:—मारा गया; सखा—मेरा मित्र; तम् त्वा—वही तुम; अद्य—आज; निशितै:—तीक्ष्ण; बाणै:—बाणों से; अपराजित—न जीता जा सकने वाला; मानिनम्—माने वाले; नयामि— भेज दूँगा; अपुन:-आवृत्तिम्—ऐसे लोक में जहाँ से लौटना नहीं होगा; यदि—यदि; तिष्ठे:—तुम खड़े होगे; मम—मेरे; अग्रत:—सामने ।.
अनुवाद
[शाल्व ने कहा] : रे मूर्ख! चूँकि हमारी उपस्थिति में तुमने हमारे मित्र और अपने ही भाई शिशुपाल की मंगेलर का अपहरण किया है और उसके बाद जब वह सतर्क नहीं था, तो पवित्र सभा में तुमने उसकी हत्या कर दी है, इसलिए आज मैं अपने तेज बाणों से तुम्हें ऐसे लोक में भेज दूँगा, जहाँ से लौटना नहीं होता। यद्यपि तुम अपने को अपराजेय मानते हो, किन्तु यदि तुम मेरे समक्ष खड़े होने का साहस करो, तो मैं तुम्हें अभी मार डालूँगा।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥