श्रीभगवानुवाच
वृथा त्वं कत्थसे मन्द न पश्यस्यन्तिकेऽन्तकम् ।
पौरुषं दर्शयन्ति स्म शूरा न बहुभाषिण: ॥ १९ ॥
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; वृथा—व्यर्थ ही; त्वम्—तुम; कत्थसे—डींग मारते हो; मन्द—हे मूर्ख; न पश्यसि—नहीं देख रहे; अन्तिके—निकट; अन्तकम्—मृत्यु; पौरुषम्—अपना पराक्रम; दर्शयन्ति—दिखलाते हैं; स्म—निस्सन्देह; शूरा:— बहादुर जन; न—नहीं; बहु—अधिक; भाषिण:—बोलने वाले ।.
अनुवाद
भगवान् ने कहा : रे मूर्ख! तुम व्यर्थ ही डींग मार रहे हो, क्योंकि तुम अपने निकट खड़ी मृत्यु को देख नहीं पा रहे हो। असली वीर कभी अधिक बातें नहीं करते, अपितु कार्य करके अपना पौरुष प्रदर्शित करते हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥