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श्लोक |
इति ब्रुवाणे गोविन्दे सौभराट् प्रत्युपस्थित: ।
वसुदेवमिवानीय कृष्णं चेदमुवाच स: ॥ २५ ॥ |
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शब्दार्थ |
इति—इस प्रकार; ब्रुवाणे—कहते हुए; गोविन्दे—कृष्ण के; सौभ-राट्—सौभ का स्वामी (शाल्व); प्रत्युपस्थित:—आगे आया; वसुदेवम्—कृष्ण के पिता वसुदेव; इव—सदृश; आनीय—आगे करके; कृष्णम्—कृष्ण से; च—तथा; इदम्—यह; उवाच—कहा; स:—उसने ।. |
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अनुवाद |
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जब गोविन्द ये शब्द कह चुके, तो भगवान् के समक्ष वसुदेव जैसे दिखने वाले किसी पुरुष को लेकर सौभ-पति पुन: प्रकट हुआ। तब शाल्व ने इस प्रकार कहा। |
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