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श्लोक |
गदसात्यकिसाम्बाद्या जघ्नु: सौभपतेर्बलम् ।
पेतु: समुद्रे सौभेया: सर्वे सञ्छिन्नकन्धरा: ॥ ४ ॥ |
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शब्दार्थ |
गद-सात्यकि-साम्ब-आद्या:—गद, सात्यकि, साम्ब तथा अन्यों ने; जघ्नु:—मार डाला; सौभ-पते:—सौभ के स्वामी (शाल्व) की; बलम्—सेना को; पेतु:—वे गिर पड़े; समुद्रे—समुद्र में; सौभेया:—सौभ के भीतर खड़े हुए; सर्वे—सारे लोग; सञ्छिन्न— कटी हुई; कन्धरा:—गर्दनों वाले ।. |
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अनुवाद |
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गद, सात्यकि, साम्ब तथा अन्य वीर शाल्व की सेना का संहार करने लगे और इस तरह विमान के भीतर के सारे सिपाही गर्दनें कट जाने से समुद्र में गिरने लगे। |
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