हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 79: भगवान् बलराम की तीर्थयात्रा  » 
 
 
 
 
संक्षेप विवरण:  इस अध्याय में बतलाया गया है कि किस तरह बलदेव ने बल्वल को मार कर ब्राह्मणों को तुष्ट किया, फिर विविध पवित्र तीर्थस्थानों में स्नान किया और तदन्तर भीमसेन तथा दुर्योधन...
 
श्लोक 1:  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, तब प्रतिपदा के दिन (शुक्लपक्ष का पहला दिन) एक प्रचण्ड तथा भयावना झंझावात आया, जिससे चारों ओर धूल बिखर गई और सर्वत्र पीब की दुर्गन्ध फैल गई।
 
श्लोक 2:  इसके बाद यज्ञशाला के क्षेत्र में बल्वल द्वारा भेजी गई घृणित वस्तुओं की वर्षा होने लगी। तत्पश्चात् वह असुर हाथ में त्रिशूल लिए साक्षात् प्रकट हुआ।
 
श्लोक 3-4:  विशालकाय असुर काले कज्जल के पिंड जैसा लग रहा था। उसकी चोटी तथा दाढ़ी पिघले ताँबे जैसी थी और उसके चेहरे में भयावने दाँत थे तथा भौंहें गढ़े में घुसी थीं। उसे देखकर बलराम ने शत्रु-सेनाओं को खण्ड-खण्ड कर देने वाली अपनी गदा और असुरों को दण्ड देने वाले अपने हल का स्मरण किया। इस प्रकार बुलाये जाने पर उनके दोनों हथियार तुरन्त ही उनके समक्ष प्रकट हो गये।
 
श्लोक 5:  ज्योंही बल्वल असुर आकाश से उड़ा, भगवान् बलराम ने अपने हल की नोंक से उसे पकड़ लिया और इस ब्राह्मण-उत्पीडक़ के सिर पर अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपनी गदा से प्रहार किया।
 
श्लोक 6:  बल्वल पीड़ा से चिल्ला उठा और पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसका सिर फट गया और उसमें से खून का फव्वारा निकलने लगा। वह विद्युत्पात से प्रताडि़त लाल (गेरू) पर्वत जैसा लग रहा था।
 
श्लोक 7:  पूज्य ऋषियों ने हार्दिक स्तुतियों से बलराम का सम्मान किया और उन्हें अमोघ वर दिये। तब उन्होंने उनका अनुष्ठानिक स्नान कराया, जिस तरह देवताओं ने इन्द्र को औपचारिक स्नान कराया था, जब उसने वृत्र का वध किया था।
 
श्लोक 8:  उन्होंने बलरामजी को कभी न मुरझाने वाली कमल के फूलों से बनी वैजयन्ती नामक माला दी, जिसमें लक्ष्मीजी रहती हैं। उन्होंने बलराम को दिव्य वस्त्रों की जोड़ी तथा आभूषण भी दिये।
 
श्लोक 9:  तत्पश्चात् ऋषियों से विदा होकर भगवान् ब्राह्मणों की टोली के साथ कौशिकी नदी गये, जहाँ उन्होंने स्नान किया। वहाँ से वे उस सरोवर पर गये, जिससे सरयू नदी निकलती है।
 
श्लोक 10:  भगवान् सरयू नदी की धारा का अनुसरण करते हुए प्रयाग आये, जहाँ उन्होंने स्नान किया और देवताओं तथा अन्य जीवों को तर्पण करने का अनुष्ठान सम्पन्न किया। इसके बाद वे पुलह ऋषि के आश्रम गये।
 
श्लोक 11-15:  भगवान् बलराम ने गोमती, गण्डकी तथा विपाशा नदियों में स्नान किया और शोण में भी डुबकी लगाई। वे गया गये, जहाँ अपने पितरों की पूजा की। गंगामुख जाकर उन्होंने शुद्धि के लिए स्नान किया। महेन्द्र पर्वत पर उन्होंने परशुराम के दर्शन किये और उनकी स्तुति की। तत्पश्चात् उन्होंने गोदावरी नदी की सातों शाखाओं में स्नान किया। उन्होंने वेणा, पम्पा तथा भीमरथी नदियों में भी स्नान किया। फिर बलराम भगवान् स्कन्द से मिले और भगवान् गिरिश के धाम श्रीशैल गये। दक्षिणी प्रान्तों में, जिन्हें द्रविड़ देश कहा जाता है, भगवान् ने पवित्र वेंकट पर्वत, कामकोष्णी तथा कांची नामक शहर, पवित्र कावेरी नदी तथा अत्यन्त पवित्र श्रीरंग को देखा, जहाँ साक्षात् भगवान् कृष्ण प्रकट हुए थे। वहाँ से वे ऋषभ पर्वत गये, जहाँ पर कृष्ण भी रहते हैं और फिर दक्षिण मथुरा गये। तत्पश्चात् वे सेतुबन्ध गये, जहाँ बड़े से बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।
 
श्लोक 16-17:  सेतुबन्ध (रामेश्वरम) में भगवान् हलायुध ने ब्राह्मणों को दान में दस हजार गौवें दीं। फिर वे कृतमाला तथा ताम्रपर्णी नदियों एवं विशाल मलय पर्वत गये। मलय-श्रेणी में भगवान् बलराम को ध्यानमग्न अगस्त्य ऋषि मिले। ऋषि को नमस्कार करके भगवान् ने स्तुति की और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। अगस्त्य से विदा होकर वे दक्षिणी सागर के तट पर गये, जहाँ उन्होंने कन्याकुमारी के रूप में दुर्गादेवी को देखा।
 
श्लोक 18:  इसके बाद वे फाल्गुन तीर्थ गये और उन्होंने पवित्र पञ्चाप्सरा सरोवर में स्नान किया, जहाँ साक्षात् भगवान् विष्णु प्रकट हुए थे। यहाँ पर उन्होंने और दस हजार गौवें दान में दीं।
 
श्लोक 19-21:  तब भगवान् ने केरल तथा त्रिगर्त राज्यों से होकर यात्रा करते हुए भगवान् शिव की पवित्र नगरी गोकर्ण देखी, जहाँ साक्षात् भगवान् धूर्जटि (शिव) प्रकट होते हैं। इसके बाद एक द्वीप में निवास करने वाली देवी पार्वती का दर्शन करके बलरामजी पवित्र शूर्पारक जिले से होकर गुजरे और तापी, पयोष्णी तथा निर्विन्ध्या नदियों में स्नान किया। तत्पश्चात् वे दण्डकारण्य में प्रविष्ट हुए और रेवा नदी गये, जिसके किनारे माहिष्मती नगरी स्थित है। फिर उन्होंने मनुतीर्थ में स्नान किया और अन्त में प्रभास लौट आये।
 
श्लोक 22:  भगवान् ने कुछ ब्राह्मणों से सुना कि किस तरह कुरुओं तथा पाण्डवों के बीच युद्ध में भाग लेने वाले सारे राजा मारे जा चुके थे। इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि अब पृथ्वी अपने भार से मुक्त हो गई है।
 
श्लोक 23:  उस समय युद्धक्षेत्र में भीम तथा दुर्योधन के मध्य चल रहे गदा-युद्ध को रोकने की इच्छा से बलरामजी कुरुक्षेत्र गये।
 
श्लोक 24:  जब युधिष्ठिर, कृष्ण, अर्जुन तथा जुड़वाँ भाई नकुल तथा सहदेव ने बलराम को देखा, तो उन सबों ने उन्हें नमस्कार किया, किन्तु यह सोचते हुए कि “ये हमें क्या बतलाने आये हैं” वे सब मौन रहे।
 
श्लोक 25:  बलराम ने देखा कि दुर्योधन तथा भीम अपने अपने हाथों में गदा लिए कलात्मक ढंग से चक्कर लगाते क्रोध से भरे हुए एक-दूसरे पर विजय पाने के लिए प्रयत्नशील हैं। भगवान् ने उन्हें इस प्रकार सम्बोधित किया।
 
श्लोक 26:  [बलरामजी ने कहा] : हे राजा दुर्योधन, हे भीम, सुनो तो, तुम दोनों योद्धा युद्ध-बल में समान हो। मैं जानता हूँ कि तुम दोनों में से एक में शारीरिक बल अधिक है, जबकि दूसरा कला में अधिक प्रशिक्षित है।
 
श्लोक 27:  चूँकि तुम दोनों युद्ध-बल में बिल्कुल एक-जैसे हो अत: मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि इस द्वन्द्व में तुम में से कोई कैसे जीतेगा या हारेगा। अतएव कृपा करके इस व्यर्थ के युद्ध को बन्द कर दो।
 
श्लोक 28:  [शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा] : हे राजन्, तर्कपूर्ण होने पर भी बलरामजी के अनुरोध को उन दोनों ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनकी पारस्परिक शत्रुता कट्टर थी। वे दोनों ही एक-दूसरे पर किये गये अपमानों तथा आघातों को निरन्तर स्मरण करते आ रहे थे।
 
श्लोक 29:  इस निष्कर्ष पर पहुँचते हुए कि युद्ध विधाता द्वारा आयोजित होता है, बलरामजी द्वारका लौट गये। वहाँ उग्रसेन ने तथा उनके अन्य सम्बन्धियों ने उनका स्वागत किया, जो सभी उन्हें देखकर प्रफुल्लित थे।
 
श्लोक 30:  बाद में बलरामजी नैमिषारण्य लौट आये, जहाँ ऋषियों ने समस्त यज्ञों के साक्षात् रूप उन्हें प्रसन्नतापूर्वक विविध प्रकार के वैदिक यज्ञों को सम्पन्न करने में लगा दिया। अब बलरामजी समस्त युद्धों से निवृत्ति प्राप्त कर चुके थे।
 
श्लोक 31:  सर्वशक्तिमान भगवान् बलराम ने ऋषियों को शुद्ध आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया, जिससे वे सभी बलरामजी के भीतर सारे ब्रह्माण्ड को देख सकें और यह भी देख सकें कि वे हर वस्तु में समाये हुए हैं।
 
श्लोक 32:  अपनी पत्नी के साथ अवभृथ स्नान करने के बाद सुन्दर वस्त्रों से सज्जित और अलंकारों से विभूषित तथा अपने निकट सम्बन्धियों, अन्य परिवार वालों एवं मित्रों से घिरे बलरामजी ऐसे भव्य लग रहे थे, मानो तेजयुक्त अपनी किरणों से घिरा हुआ चन्द्रमा हो।
 
श्लोक 33:  उन अनन्त तथा अप्रमेय बलशाली भगवान् बलराम द्वारा असंख्य अन्य लीलाएँ सम्पन्न की गईं, जो अपनी योगमाया से मनुष्य के रूप में दिखते हैं।
 
श्लोक 34:  अनन्त भगवान् बलराम के सारे कार्यकलाप चकित कर देने वाले हैं। जो कोई भी प्रात: तथा सायं उनका निरन्तर स्मरण करता है, वह भगवान् श्री विष्णु का अत्यन्त प्रिय बन जाता है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥