श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 79: भगवान् बलराम की तीर्थयात्रा  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  10.79.28 
न तद्वाक्यं जगृहतुर्बद्धवैरौ नृपार्थवत् ।
अनुस्मरन्तावन्योन्यं दुरुक्तं दुष्कृतानि च ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
न—नहीं; तत्—उसके; वाक्यम्—शब्दों को; जगृहतु:—दोनों ने स्वीकार किया; बद्ध—स्थिर; वैरौ—शत्रुता; नृप—हे राजा (परीक्षित); अर्थ-वत्—विवेकशील; अनुस्मरन्तौ—स्मरण रखते हुए; अन्योन्यम्—एक-दूसरे को; दुरुक्तम्—कटु वचन; दुष्कृतानि—दुष्कर्म; च—भी ।.
 
अनुवाद
 
 [शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा] : हे राजन्, तर्कपूर्ण होने पर भी बलरामजी के अनुरोध को उन दोनों ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनकी पारस्परिक शत्रुता कट्टर थी। वे दोनों ही एक-दूसरे पर किये गये अपमानों तथा आघातों को निरन्तर स्मरण करते आ रहे थे।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥