श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 79: भगवान् बलराम की तीर्थयात्रा  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.79.30 
तं पुनर्नैमिषं प्राप्तमृषयोऽयाजयन् मुदा ।
क्रत्वङ्गं क्रतुभि: सर्वैर्निवृत्ताखिलविग्रहम् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको, बलराम को; पुन:—फिर; नैमिषम्—नैमिषारण्य; प्राप्तम्—पहुँचे हुए; ऋषय:—ऋषिगण; अयाजयन्—वैदिक यज्ञ में व्यस्त; मुदा—प्रसन्नतापूर्वक; क्रतु—समस्त यज्ञों के; अङ्गम्—अंगस्वरूप; क्रतुभि:—अनुष्ठानों से; सर्वै:—सभी प्रकार के; निवृत्त—परित्यक्त किया गया; अखिल—समस्त; विग्रहम्—युद्ध ।.
 
अनुवाद
 
 बाद में बलरामजी नैमिषारण्य लौट आये, जहाँ ऋषियों ने समस्त यज्ञों के साक्षात् रूप उन्हें प्रसन्नतापूर्वक विविध प्रकार के वैदिक यज्ञों को सम्पन्न करने में लगा दिया। अब बलरामजी समस्त युद्धों से निवृत्ति प्राप्त कर चुके थे।
 
तात्पर्य
 श्रील प्रभुपाद लिखते हैं: “[जब बलराम] पवित्र तीर्थस्थल नैमिषारण्य गये तो ऋषियों, सन्त-पुरुषों तथा ब्राह्मणों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। वे समझ गये कि यद्यपि बलराम क्षत्रिय हैं, किन्तु अब युद्ध-कार्य से निवृत्ति प्राप्त कर चुके हैं। सदैव सुख-शान्ति के पक्षधर ब्राह्मण तथा ऋषिगण इससे अत्यन्त प्रसन्न हुए। सभी ने अत्यन्त स्नेहपूर्वक श्री बलरामजी का आलिंगन किया तथा नैमिषारण्य नामक पवित्र स्थान में विभिन्न प्रकार के यज्ञ सम्पन्न करने के लिए उन्हें प्रेरित किया। वास्तव में बलराम का साधारण मनुष्यों के लिए संस्तुत यज्ञ से कोई प्रयोजन नहीं था, वे तो भगवान् हैं, अतएव वे स्वयं ऐसे समस्त यज्ञों के भोक्ता हैं। फलत: यज्ञ निष्पादित करने का उनका अनुकरणीय कार्य सामान्य जन को यह पाठ पढ़ाने के हेतु था कि किस तरह वेदों के आदेशों का पालन करना चाहिए।”
 
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