श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 79: भगवान् बलराम की तीर्थयात्रा  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.79.5 
तमाकृष्य हलाग्रेण बल्वलं गगनेचरम् ।
मूषलेनाहनत्क्रुद्धो मूर्ध्‍नि ब्रह्मद्रुहं बल: ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; आकृष्य—अपनी ओर खींच कर; हल—हल के; अग्रेण—अगले भाग से; बल्वलम्—बल्वल को; गगने— आकाश में; चरम्—विचरण करने वाले; मूषलेन—अपनी गदा से; अहनत्—प्रहार किया; क्रुद्ध:—नाराज; मूर्ध्नि—सिर पर; ब्रह्म—ब्राह्मणों का; द्रुहम्—तंग करने वाला; बल:—बलराम ने ।.
 
अनुवाद
 
 ज्योंही बल्वल असुर आकाश से उड़ा, भगवान् बलराम ने अपने हल की नोंक से उसे पकड़ लिया और इस ब्राह्मण-उत्पीडक़ के सिर पर अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपनी गदा से प्रहार किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥