एष:—यह बालक; व:—तुम सबों के लिए; श्रेय:—अत्यन्त शुभ; आधास्यत्—शुभ कार्य करेगा; गोप-गोकुल-नन्दन:—जैसे एक ग्वालबाल ग्वालों के परिवार में गोकुल के पुत्र रूप में पैदा हुआ हो; अनेन—इसके द्वारा; सर्व-दुर्गाणि—सभी प्रकार के कष्ट; यूयम्—तुम सभी; अञ्ज:—सरलता से; तरिष्यथ—पार कर लोगे, लाँघ लोगे ।.
अनुवाद
यह बालक गोकुल के ग्वालों के दिव्य आनन्द को बढ़ाने हेतु तुम्हारे लिए सदैव शुभ कर्म करेगा। इसकी ही कृपा से तुम लोग सारी कठिनाइयों को पार कर सकोगे।
तात्पर्य
कृष्ण ग्वाल-समूहों तथा गौंवों के परम मित्र हैं इसीलिए उनकी स्तुति नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च की प्रार्थना के रूप में की जाती है। उनके धाम गोकुल में उनकी लीलाएँ ब्राह्मणों तथा गौवों के अनुकूल होती हैं। उनका
सर्वोपरि कार्य है गौवों तथा ब्राह्मणों को सारे सुख देना। वस्तुत: ब्राह्मणों के निमित्त सुखभी गौण है, गौवें ही सर्वोपरि हैं। उनकी उपस्थिति से सारे लोगों की कठिनाइयाँ दूर होंगी और वे दिव्य आनन्द प्राप्त करेंगे।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥