जब अतिथि रूप में गर्गमुनि का स्वागत हो चुका और वे ठीक से आसन ग्रहण कर चुके तो नन्द महाराज ने भद्र तथा विनीत शब्दों में निवेदन किया: महोदय, भक्त होने के कारण आप सभी प्रकार से परिपूर्ण हैं। फिर भी आपकी सेवा करना मेरा कर्तव्य है। कृपा करके आज्ञा दें कि मैं आपके लिए क्या करूँ?
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All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
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