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श्लोक  |
तमुपैहि महाभाग साधूनां च परायणम् ।
दास्यति द्रविणं भूरि सीदते ते कुटुम्बिने ॥ १० ॥ |
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शब्दार्थ |
तम्—उसके; उपैहि—पास जाओ; महा-भग—हे भाग्यवान्; साधूनाम्—साधुओं के; च—तथा; पर-अयणम्—चरम शरण; दास्यति—देगा; द्रविणम्—सम्पत्ति; भूरि—प्रचुर; सीदते—कष्ट पा रहे; ते—तुम्हें; कुटुम्बिने—परिवार का पालन-पोषण कर रहे ।. |
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अनुवाद |
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हे भाग्यवान्, आप समस्त सन्तों के असली शरण, उनके पास जाइये। वे निश्चय ही आप जैसे कष्ट भोगने वाले गृहस्थ को प्रचुर सम्पदा प्रदान करेंगे। |
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