[शुकदेव गोस्वामी ने कहा] : इस प्रकार अपने आप सोचते-सोचते सुदामा अन्तत: उस स्थान पर आ पहुँचा, जहाँ उसका घर हुआ करता था। किन्तु अब वह स्थान सभी ओर से ऊँचे भव्य महलों से घनीभूत था, जो सूर्य, अग्नि तथा चन्द्रमा के सम्मिलित तेज से होड़ ले रहे थे। वहाँ आलीशान आँगन तथा बगीचे थे, जो कूजन करते हुए पक्षियों के झुंडों से भरे थे और जलाशयों से सुशोभित थे, जिनमें कुमुद, अम्भोज, कह्लार तथा उत्पल नामक कमल खिले हुए थे। अगवानी के लिए उत्तम वस्त्र धारण किये पुरुष तथा हिरनियों जैसी आँखों वाली स्त्रियाँ खड़ी थीं। सुदामा चकित था कि यह सब क्या है? यह किसकी संपत्ति है? और यह सब कैसे हुआ?
तात्पर्य
श्रील श्रीधर स्वामी ने ब्राह्मण के विचारों के क्रम को इस प्रकार बतलाया है—सर्वप्रथम महान् अपरिचित तेज देखकर उसने सोचा यह क्या है? फिर महलों को देखकर उसने अपने मन में कहा कि यह किसका स्थान है? और उसे अपना ही पहचान कर वह आश्चर्य करने लगा कि यह किस तरह इतना बदल गया है।
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