सुदामा अपनी पत्नी को देखकर चकित था। रत्नजटित लॉकेटों से अलंकृत दासियों के बीच चमक रही वह उसी तरह तेजोमय लग रही थी, जिस तरह कोई देवी अपने दैवी-विमान में दीपित हो।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती बतलाते हैं कि अभी तक भगवान् उस ब्राह्मण को दरिद्र अवस्था में रखे रहे, जिससे उसकी पत्नी उसे पहचान सके।
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