तत्र—वहाँ; आगतान्—आये हुए; ते—उन्होंने (यादवों ने); ददृशु:—देखा; सुहृत्—मित्रों; सम्बन्धिन:—तथा सम्बन्धीजनों; नृपान्—राजाओं को; मत्स्य-उशीनर-कौशल्य-विदर्भ-कुरु-सृञ्जयान्—मत्स्यों, उशीनरों, कौशलों, विदर्भों, कुरुओं तथा सृञ्जयों को; काम्बोज-कैकयान्—काम्बोजों तथा कैकयों को; मद्रान्—मद्रों को; कुन्तीन्—कुन्तियों को; आनर्त-केरलान्— आनर्तों तथा केरलों को; अन्यान्—अन्यों को; च एव—भी; आत्म-पक्षीयान्—अपनी टोली वालों; परान्—विपक्षियों को; च—तथा; शतश:—सैकड़ों; नृप—हे राजा (परीक्षित); नन्द-आदीन्—नन्द महाराज इत्यादि; सुहृद:—उनके प्रिय मित्र; गोपान्—ग्वालों को; गोपी:—गोपियों को; च—तथा; उत्कण्ठिता:—चिन्तित; चिरम्—दीर्घकाल से ।.
अनुवाद
यादवों ने देखा कि वहाँ पर आये अनेक राजा उनके पुराने मित्र तथा सम्बन्धी—मत्स्य, उशीनर, कौशल्य, विदर्भ, कुरु, सृञ्जय, काम्बोज, कैकय, मद्र, कुन्ती तथा आनर्त एवं केरल देशों के राजा थे। उन्होंने अन्य सैकड़ों राजाओं को भी देखा, जो स्वपक्षी तथा विपक्षी दोनों ही थे। इसके अतिरिक्त हे राजा परीक्षित, उन्होंने अपने प्रिय मित्रों, नन्द महाराज तथा ग्वालों और गोपियों को देखा, जो दीर्घकाल से चिन्तित होने के कारण दुखी थे।
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