श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 9: माता यशोदा द्वारा कृष्ण का बाँधा जाना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.9.6 
सञ्जातकोप: स्फुरितारुणाधरं
सन्दश्य दद्भ‍िर्दधिमन्थभाजनम् ।
भित्त्वा मृषाश्रुर्द‍ृषदश्मना रहो
जघास हैयङ्गवमन्तरं गत: ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
सञ्जात-कोप:—इस तरह कृष्ण अत्यन्त क्रुद्ध होकर; स्फुरित-अरुण-अधरम्—सूजे हुए लाल-लाल होंठ; सन्दश्य—काटते हुए; दद्भि:—अपने दाँतों से; दधि-मन्थ-भाजनम्—मटकी को; भित्त्वा—तोड़ते हुए; मृषा-अश्रु:—आँखों में नकली आँसू भर कर; दृषत्-अश्मना—कंकड़ से; रह:—एकान्त स्थान में; जघास—खाने लगे; हैयङ्गवम्—ताजा मक्खन; अन्तरम्—कमरे के भीतर; गत:—जाकर ।.
 
अनुवाद
 
 अत्यधिक क्रुद्ध होकर तथा अपने लाल-लाल होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए और आँखों में नकली आँसू भरते हुए कृष्ण ने एक कंकड़ मार कर मटकी तोड़ दी। इसके बाद वे एक कमरे में घुस गये और एकान्त स्थान में ताजा मक्खन खाने लगे।
 
तात्पर्य
 यह स्वाभाविक है कि जब कोई बच्चा क्रुद्ध होता है, तो वह आँखों में नकली आँसू भर कर चिल्लाने लगता है। कृष्ण ने भी वही किया और अपने लाल-लाल होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए उन्होंने कंकड़ से मटकी तोड़ डाली और कमरे में घुस कर ताजा मक्खन खाने लगे।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥