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श्लोक 11.1.20  |
श्रुत्वामोघं विप्रशापं दृष्ट्वा च मुषलं नृप ।
विस्मिता भयसन्त्रस्ता बभूवुर्द्वारकौकस: ॥ २० ॥ |
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शब्दार्थ |
श्रुत्वा—सुनकर; अमोघम्—व्यर्थ न जाने वाला; विप्र-शापम्—ब्राह्मणों के शाप को; दृष्ट्वा—देखकर; च—तथा; मुषलम्— मूसल को; नृप—हे राजा; विस्मिता:—चकित; भय—भय से; सन्त्रस्ता:—किंकर्तव्यविमूढ़; बभूवु:—हो गये; द्वारका- ओकस:—द्वारका के निवासी ।. |
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अनुवाद |
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हे राजा परीक्षित, जब द्वारकावासियों ने ब्राह्मणों के अमोघ शाप को सुना और मूसल को देखा, तो वे भय से विस्मित तथा किकंर्तव्यविमूढ़ हो गये। |
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