ता: ता:—वे सभी; क्षपा:—रातें; प्रेष्ठ-तमेन—अत्यन्त प्रिय के साथ; नीता:—बिताई गई; मया—मेरे द्वारा; एव—निस्सन्देह; वृन्दावन—वृन्दावन में; गो-चरेण—जिसे जाना जा सकता है; क्षण—एक पल; अर्ध-वत्—आधे के समान; ता:—वे रातें; पुन:—फिर; अङ्ग—हे उद्धव; तासाम्—गोपियों के लिए; हीना:—रहित; मया—मुझसे; कल्प—ब्रह्मा का दिन (४,३२,००,००,०००); समा:—तुल्य; बभूवु:—हो गया ।.
अनुवाद
हे उद्धव, वे सारी रातें, जो वृन्दावन भूमि में गोपियों ने अपने अत्यन्त प्रियतम मेरे साथ बिताईं, वे एक क्षण से भी कम में बीतती प्रतीत हुईं। किन्तु मेरी संगति के बिना बीती वे रातें गोपियों को ब्रह्मा के एक दिन के तुल्य लम्बी खिंचती सी प्रतित हुई।
तात्पर्य
श्रील श्रीधर स्वामी की टीका इस प्रकार है : कृष्ण की अनुपस्थिति में गोपियों को अत्यन्त चिन्ता हुई। ऊपर से अन्यन्त मोहग्रस्त प्रतीत होती हुईं उन्होंने वास्तव में समाधि की सर्वोच्च सिद्धावस्था प्राप्त कर ली थी। उनकी चेतना भगवान् कृष्ण में प्रगाढ़ता से अनुरक्त थी और ऐसी कृष्ण- चेतना में उनके शरीर उनसे बहुत दूर लगते थे, यद्यपि लोग शरीर को अपने सबसे निकट पाते हैं। वस्तुत: गोपियाँ अपने अस्तित्व के बारे में नहीं सोचती थीं। यद्यपि साधारणतया एक युवती अपने पति तथा अपनी सन्तान को अपनी सबसे प्रिय पूँजी मानती है, किन्तु गोपियाँ अपने तथाकथित परिवारों के अस्तित्व को भी नहीं मानती थीं। न ही वे इस संसार के बारे में, अथवा मृत्यु के बाद के जीवन के विषय में सोच पाती थीं। दरअसल, उन्हें इन बातों का बिल्कुल ध्यान नहीं था। जिस तरह ऋषि मुनि सांसारिक नाम तथा रूप से विरक्त हो जाते हैं, गोपियाँ भी किसी वस्तु के बारे में नहीं सोच पाती थीं, क्योंकि वे कृष्ण की प्रेममयी स्मृति से अभिभूत रहती थीं। जिस तरह नदियाँ समुद्र में मिलती हैं, उसी तरह गोपियाँ अपने गहन प्रेम से कृष्ण-चेतना में पूर्णतया विलीन थीं।”
इस तरह कृष्ण के उनके साथ रहने पर गोपियों को ब्रह्मा का एक दिन एक क्षण के तुल्य लगता था, किन्तु कृष्ण की अनुपस्थिति में एक क्षण ब्रह्मा के एक दिन जैसा प्रतीत होने लगा। गोपियों की कृष्ण-चेतना आध्यात्मिक जीवन की सिद्धि है और यहाँ पर ऐसी सिद्धि के लक्षणों का वर्णन हुआ है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥