भूत-सूक्ष्म—सूक्ष्म तत्त्वों के; आत्मनि—आत्मा में; मयि—मुझमें; तत्-मात्रम्—अनुभूति के सूक्ष्म तात्विक रूपों पर; धारयेत्— एकाग्र करे; मन:—मन को; अणिमानम्—अणिमा नामक सिद्धि; अवाप्नोति—प्राप्त करता है; तत्-मात्र—सूक्ष्म तत्त्वों में; उपासक:—पूजा करने वाला; मम—मेरा ।.
अनुवाद
जो व्यक्ति अपने मन को समस्त सूक्ष्म तत्त्वों में व्याप्त मेरे सूक्ष्म रूप में एकाग्र करके मेरी पूजा करता है, वह अणिमा नामक योग-सिद्धि प्राप्त करता है।
तात्पर्य
अणिमा सूचक है अपने को छोटे-से-छोटा बनाने की शक्ति और किसी भी वस्तु के भीतर प्रवेश करने की सामर्थ्य का। भगवान् परमाणुओं तथा सूक्ष्म कणों के भीतर हैं और जो व्यक्ति भगवान् के उस सूक्ष्म रूप में अपने मन को ठीक से एकाग्र करता है, वह अणिमा नामक योगशक्ति प्राप्त करता है, जिससे मनुष्य पत्थर जैसे सघन पदार्थ के भीतर भी प्रवेश कर सकता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.