भगवान् के आदेश से ही सम्पूर्ण सृष्टि घूमती है। जैसाकि भगवद्गीता (९.१०) में कहा गया है— मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥
“हे कुन्ती-पुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं। उसके शासन में यह जगत बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है।” इसी तरह श्री चैतन्य महाप्रभु ने आदेश दिया है कि सारे विश्व के लोग कृष्णभावनामृत को ग्रहण करें। भगवान् के निष्ठावान भक्तों को चाहिए कि महाप्रभु के आदेश को विश्व-भर में दुहरायें। इस तरह वे ऐसे आदेश देने के भगवान् के योग-ऐश्वर्य में सहभागी हो सकते हैं जिनका कभी निराकरण नहीं हो सकता।