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श्लोक  |
सूत उवाच
तमेवं निभृतात्मानं वृषेण दिवि पर्यटन् ।
रुद्राण्या भगवान् रुद्रो ददर्श स्वगणैर्वृत: ॥ ३ ॥ |
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शब्दार्थ |
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; तम्—उसको, मार्कण्डेय ऋषि को; एवम्—इस प्रकार; निभृत-आत्मानम्—समाधि में पूर्णतया निमग्न मन वाला; वृषेण—अपने बैल पर; दिवि—आकाश में; पर्यटन्—यात्रा करते हुए; रुद्राण्या—अपनी प्रिया रुद्राणी (उमा) के साथ; भगवान्—शक्तिशाली प्रभु; रुद्र:—शिव ने; ददर्श—देखा; स्व-गणै:—अपने संगियों से; वृत:—घिरे हुए ।. |
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अनुवाद |
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सूत गोस्वामी ने कहा : भगवान् रुद्र ने अपने बैल पर सवार अपनी प्रिया रुद्राणी तथा अपने निजी संगियों के साथ, मार्कण्डेय को समाधि में देखा। |
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