स:—वह, मार्कण्डेय; अपि—निस्सन्देह; अवाप्त—प्राप्त करके; महा-योग—योग की सर्वोच्च सिद्धि की; महिमा— महिमा; भार्गव-उत्तम:—श्रेष्ठ भृगुवंशी; विचरति—विचरण कर रहा है; अधुना अपि—आज भी; अद्धा—प्रत्यक्ष; हरौ— हरि के लिए; एक-अन्तताम्—एकान्तिक भक्ति का पद; गत:—प्राप्त करके ।.
अनुवाद
श्रेष्ठ भृगुवंशी मार्कण्डेय ऋषि अपनी योग-सिद्धि की उपलब्धि के कारण यशस्वी हैं। आज भी वे इस जगत में भगवान् की अनन्य भक्ति में पूरी तरह लीन होकर विचरण करते हैं।
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