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श्लोक 13
श्लोक
12.11.13
अव्याकृतमनन्ताख्यमासनं यदधिष्ठित: ।
धर्मज्ञानादिभिर्युक्तं सत्त्वं पद्ममिहोच्यते ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
अव्याकृतम्
—सृष्टि की अव्यक्त अवस्था;
अनन्त-आख्यम्
—अनन्त कहलाने वाली;
आसनम्
—उनका आसन;
यत्- अधिष्ठित:
—जिस पर वे बैठे हुए हैं;
धर्म-ज्ञान-आदिभि:
—धर्म, ज्ञान इत्यादि के साथ;
युक्तम्
—जुड़ा हुआ;
सत्त्वम्
— सतोगुणमें;
पद्मम्
—उनका कमल;
इह
—उस पर;
उच्यते
—कहा जाता है ।.
अनुवाद
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भगवान् का आसन, अनन्त, भौतिक प्रकृति की अव्यक्त अवस्था है और भगवान् का कमल सिंहासन, सतोगुण है, जो धर्म तथा ज्ञान से समन्वित है।
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