सूर्य मण्डल ही वह स्थान है जहाँ भगवान् पूजे जाते हैं; दीक्षा ही आत्मा की शुद्धि का साधन है और भगवान् की भक्ति करना ही किसी के पापों को समूल नष्ट करने की विधि है।
तात्पर्य
मनुष्य को अग्निमय सूर्य मण्डल का ध्यान ऐसे स्थान के रूप में करना चाहिए जहाँ ईश्वर की पूजा होती है। भगवान् कृष्ण समस्त तेज के आगार हैं इसलिए यह युक्तियुक्त है कि उनकी पूजा तेजोमय सूर्य में की जाय।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.