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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  12.11.18 
भगवान् भगशब्दार्थं लीलाकमलमुद्वहन् ।
धर्मं यशश्च भगवांश्चामरव्यजनेऽभजत् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
भगवान्—भगवान्; भग-शब्द—भग शब्द का; अर्थम्—अर्थ (ऐश्वर्य); लीला-कमलम्—उनका लीला कमल; उद्वहन्—धारण करते हुए; धर्मम्—धर्म; यश:—यश; —तथा; भगवान्—भगवान् ने; चामर-व्यजने—चामर के दो पंखे; अभजत्—स्वीकार किया है ।.
 
अनुवाद
 
 लीलाकमल को जोकि भग शब्द से विभिन्न ऐश्वर्यों का सूचक है सहज रूप में धारण करते हुए भगवान्, धर्म तथा यश रूपी दो चामरों से सेवित हैं।
 
 
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