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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  12.11.25 
श्रीकृष्ण कृष्णसख वृष्ण्यृषभावनिध्रुग्
राजन्यवंशदहनानपवर्गवीर्य ।
गोविन्द गोपवनिताव्रजभृत्यगीत-
तीर्थश्रव: श्रवणमङ्गल पाहि भृत्यान् ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-कृष्ण—हे श्रीकृष्ण; कृष्ण-सख—हे अर्जुन के मित्र; वृष्णि—वृष्णिवंशी के; ऋषभ—हे प्रमुख; अवनि—पृथ्वी पर; ध्रुक्—विद्रोही; राजन्य-वंश—राजवंशों के; दहन—हे संहारक; अनपवर्ग—बिना ह्रास के; वीर्य—जिसका पराक्रम; गोविन्द—हे गोलोक धाम के स्वामी; गोप—ग्वालों के; वनिता—तथा गोपियाँ; व्रज—समूह; भृत्य—तथा उनके सेवक; गीत—गाया हुआ; तीर्थ—पवित्र, जिस तरह तीर्थस्थान होते हैं; श्रव:—जसिका यश; श्रवण—जिसके विषय में सुनने के लिए; मङ्गल—शुभ; पाहि—कृपया रक्षा करें; भृत्यान्—अपने सेवकों की ।.
 
अनुवाद
 
 हे कृष्ण, हे अर्जुन के सखा, हे वृष्णिवंशियों के प्रमुख, आप इस पृथ्वी पर उत्पात मचाने वाले राजनीतिक दलों के संहारक हैं। आपका पराक्रम कभी घटता नहीं। आप दिव्य धाम के स्वामी हैं और आपकी पवित्र महिमा जो वृन्दावन के गोपों, गोपियों तथा उनके सेवकों द्वारा गाई जाती है, सुनने मात्र से सर्वमंगलदायिनी है। हे प्रभु, आप अपने भक्तों की रक्षा करें।
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥