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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 12: पतनोन्मुख युग  »  अध्याय 11: महापुरुष का संक्षिप्त वर्णन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  12.11.29 
सूत उवाच
अनाद्यविद्यया विष्णोरात्मन: सर्वदेहिनाम् ।
निर्मितो लोकतन्त्रोऽयं लोकेषु परिवर्तते ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; अनादि—जिसका आदि न हो; अविद्यया—माया द्वारा; विष्णो:—भगवान् विष्णु की; आत्मन:—परमात्मा रूप; सर्व-देहिनाम्—सारे देहधारी जीवों का; निर्मित:—उत्पन्न किया; लोक-तन्त्र:—लोकों के नियामक; अयम्—इस; लोकेषु—लोकों के बीच; परिवर्तते—भ्रमण करता है ।.
 
अनुवाद
 
 सूत गोस्वामी ने कहा : सूर्य समस्त ग्रहों के बीच भ्रमण करता है और उनकी गतियों को नियमित करता है। इसे समस्त देहधारियों के परमात्मा, भगवान् विष्णु, ने अपनी अनादि भौतिक शक्ति के द्वारा उत्पन्न किया है।
 
 
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